धन भी पुन: प्राप्त हो सकता है, मित्र भी मिल सकते है, पत्नी भी फिर से मिल सकती है | ये सब वस्तुएं मनुष्य को बार-बार प्राप्त हो सकती है, परंतू यह शरीर बार-बार नहीं मिलता
समस्त प्राणियों के कल्याण के लिए परमपिता परमेश्वर ने इस सृष्टि की रचना की, यह शरीर भी बनाया और शरीर को उत्पन्न करने के साथ ही मृत्यु नामक एक वस्तु भी बनायी है तथा इस नियम के साथ बांध भी दिया कि जब-जब शरीर की उत्पत्ति होगी तब-तब मृत्यु भी सुनिश्चित होगी। लोग इस सृष्टि को कुछ मात्रा में समझते हैं, प्रयोग भी करते हैं, इसी प्रकार इस शरीर को भी कुछ मात्रा में जानते हैं और उसका उपयोग भी करते हैं परन्तु लोग इस मृत्यु के स्वरूप को सही रूप में समझते नहीं हैं,उससे बचना चाहते हैं।
शरीर से जीव का संयोग मात्र होना ही जन्म कहलाता है और शरीर से वियोग होने का नाम ही तो मृत्यु है। जिस समय हमारा शरीर के साथ संयोग होकर जन्म होता है उसी समय मृत्यु का भी जन्म होता है और वह जीवन भर हमारे साथ चलती रहती है । कुछ लोगों का मानना यह है कि मृत्यु सबसे बड़ा दुःख है, यह भी सत्य है कि दुःख तो जिन्दगी देती है, मौत तो दुःख से छुटकारा दिलाती है। यह तो सत्य ही है कि जब हमारी मृत्यु होती है तब संसार के सभी वस्तुओं से, सभी प्रकार के सुख व सुख-साधनों से और समस्त सगे-सम्बन्धियों से हमारा वियोग हो जाता है परन्तु उन सब के वियोग होने मात्र से ही दुखी होना उचित नहीं है। हमारी मिथ्या धारणा के कारण ही हम मृत्यु को स्वीकार नहीं करते और मृत्यु से भयभीत होते हैं। यदि हमें वास्तविक ज्ञान हो जाये अथवा उचित शिक्षा मिल जाये तो हम इस मृत्यु के दुःख से बच सकते हैं
इसलिए मनुष्यों को यह आवश्यक है की, सदैव शरीर से अच्छे कर्म हि करे क्योकी मनुष्य का शरीर प्राप्त होना बहुत दुर्लभ है और इसे अच्छा बनाए रखने के लिये हर दिन व्यायाम, प्राणायाम और शुद्ध शाकाहारी भोजन अवश्य करे|
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