विद्यार्थी के लिये आवश्यक है की वह काम, क्रोध, लोभ, स्वादिष्ट पदार्थ कि इच्छा, शृंगार, खेल-तमाशे, अधिक सोना और चापलूसी करना इन 8 बातो का ध्यान रखने पर विद्यार्थी आगे बढ सकते है
और विद्यार्थी कि एक उचित दिनचर्या होनी चाहिये जो सुबह से लेकरं श्याम तक हो,और उसमे सबसे महत्वपूर्ण भाग सुबह शरीर के लिये व्यायाम और बुद्धी बढाने के लिये प्राणायाम अवश्य शामिल हो।
एक आदर्श विद्यार्थी देश के भविष्य मे मददगार साबित होता है वे बडे होकर देश कि सेवा कर सकते है,और अपने देश और परिवार का नाम ऊंचा करते है। यदि किसी व्यक्ती का विद्यार्थी जीवन आदर्श न रहा है तो उसे आगे चलकर आदर्श नागरीक बनने मे काफी मुश्किल हो सकती है।
आदर्श विद्यार्थी वह है जो ज्ञान या विद्या कि प्राप्ती को जीवन का पहला आदर्श मानता है। जिसे विद्या कि चाह् नही वह आदर्श विद्यार्थी नहीं हो सकता। यह विद्या हि है जो मनुष्य को नम्र,सहनशील और गुणवान बनाती है। विद्या कि प्राप्ती से ही विद्यार्थी आगे चलकर योग्य नागरिक बन पाता है।
आदर्श विध्यार्थी को अच्छी पुस्तको से प्रेम होता है वह पुस्तको के अच्छे गुणो को अपनाता है और बुराइयों से दूर रहता है
आदर्श विद्यार्थी सीधा और सच्चा होना चाहिये। उसे आलस्य नहीं करना चाहिये। परिश्रमी और लगनशील होना चाहिए। पढाई के अलावा खेलकुद और अन्य गतिविधियाँ मे भी भाग लेना चाहिए। उसे विद्यालय मे होने वाली प्रत्येक गतिविधियों मे भाग लेकर अपने व्यक्तित्व का विकास करना चाहिए। एक आदर्श विध्यार्थी अपने लक्ष को हमेशा ध्यान मे रखता है।
विद्यां ददाति विनयं,
विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति,
धनात् धर्मं ततः सुखम्॥
अर्थ :->विद्या विनय अर्थात विवेक और विनम्रता प्रदान करती है ,विवेक से मनुष्य योग्यता प्राप्त करता है,अपनी योग्यता के दम पर मनुष्य धन प्राप्त करता है और धन से धार्मिक कार्य समपन्न हो सकते है ,धार्मिक कार्य से असीम आनन्द की प्राप्ति होती है ।इसका अर्थ है कि मनुष्य को सदैव सर्वश्रेष्ठ कार्य करने चाहिये उसीसे सुख की प्राप्ति होती है।इसके मूल मे ये है कि मनुष्य को ज्ञानवान होने की आवश्यकता है।
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