ब्राम्हाणो का बल विद्या है, राजाओ का बल उनकी सेना,व्यापारियों का बल उनका धन है और शुद्रो का बल दुसरो की सेवा करना है |
ब्राम्हणो का कर्तव्य है कि विद्या ग्रहण करे और चारो वर्णो का दान करे | राजाओ का कर्तव्य है कि सैनिको द्वारा अपने बल को बढाता रहे | वैश्यो को चाहिये कि वे पशु-पालन और व्यापार द्वारा धन बढाये,शुद्रो का बल सेवा है |
आचार्य चाणक्य के ने यहा चारो वर्णो के कर्तव्य की ओर संकेत किया है | उनके अनुसार – चारो वर्णो को अपने-अपने कार्यो मे निपुण होना चाहिये | समाज मे किसी कि स्थिती कम नही है | समय के अनुसार परिस्थितीया बदलती है,सम्भवता: किसी समय जन्म के अनुसार चारो वर्ण माने जातो हो,परंतु तथ्य यह है की वर्णो कि मान्यता कार्यो पर निर्भर रहती है |
इसीलिये किसी भी कुल मे जन्म लेने वाला व्यक्ती शिक्षा के क्षेत्र मे है, तो उसे ब्राम्हण हि माना जायेगा | जो व्यक्ती व्यापार करता हो,कृषी कार्य मे लगा है,पशु-पालन करता है,उसे वैश्य माना जायेगा | जो सेना मे भर्ती है अथवा सेना संबंधित कार्य करता हो उसे क्षत्रिय माना जायेगा | शेष (अनपढ,पढाई करके भी कुछ न समझने के कारन) शूद्र-शूद्र भी शिक्षीत हो सकता है| परंतु किसी भी वर्ण मे पैदा हुआ व्यक्ती जो लोगो कि सेवा कार्य मे लगा है,उसे शूद्र माना जायेगा -शूद्र का अर्थ नीच नहीं है |आज्ञापालन करना शूद्र का विशेष गुण है |प्राय: इस श्रेणी के लोग मानसिक रूप से संतुष्ट होते है.|
ब्राम्हण को आज शिक्षक वर्ग कह सकते है |
क्षत्रिय को आज सेना ( आर्मी,पुलिस) कह सकते है |
वैश्य को व्यापार,कृषी,पशुपालन करने वाले को कह सकते है |
शूद्र को आज अनपढ को कह सकते है |
जन्मना जायते शुद्र😐 संस्कारात् द्विज् उच्यते|
अर्थात:- जन्म से हर कोई शूद्र होता है, हम अपने स्वयम के कर्मो से महान बनते है |
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