सत्यमप्यश्रद्धेयं न वदेत्
जिस व्यक्ति की सत्य मे श्रद्धा न हो, उस व्यक्ति को सत्य के संबंध मे कुछ कहना व्यर्थ है। चाणक्य कहते है कि जिसे सत्य अप्रिय लागता हो, उससे सत्य कहकर सत्य का अपमान मत करवाओ।
सत्य बात सुनना काफी कठीन होता है। यदि सत्य कठोर हो तो उसे सुनना सहन करना उससे भी कठीन कार्य होता है। परंतु इसके साथ ही सच्ची बात कहनेवाला व्यक्ती भी दुर्लभ होते है क्योकी प्रत्येक व्यक्ती अपने स्वार्थ से प्रेरित होकर कोई कार्य करता या कहता है।
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